भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेटियों की मुस्कान / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:20, 11 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} बेटियों की मुस्कान – जैस...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बेटियों की मुस्कान –

जैसे गूँज उठा

भोर में साम -गान ,

जैसे वन में तिरती

बाँसुरी की तान ,

जैसे भरी दुपहरी में

बरगद की छाया

जैसे लू के बाद

बह उठी शीतल बयार ।

मत छीनो यह मुस्कान

इसके छिन जाने पर -

रूठ जाएँगी ॠचाएँ ,

डूब जाएँगे सातों स्वर ,

रूठ जाएगी शीतल छाया ,

बयार बनेगी

अंगारों की बौछार

झुलस जाएगी सारी सृष्टि ।