भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक बच्चे की हँसी / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:30, 11 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} खो गई है एक बच्चे की हँसी ...)
खो गई है
एक बच्चे की हँसी
यहीं कहीं इस भीड़ में ।
कलियों –से होंठो पर
जड़ दी गई हज़ारों कीलें
कँटीले विज्ञापनों की ;
जिनमें प्रति नायक के
टेढ़े-मेढ़े चेहरे हैं
और हैं उधार ली गई आवाज़ें
मकड़ जाल में लिपटी
बेहूदी आकृतियाँ
खोखली हँसी
आपाधापी मचाती
दृष्टिहीन भगदड़
इसी में
चिथ गए हैं
अंकुर -से नन्हें पाँव ।
बुझ गई है दृष्टि
गले में फँसकर
रह गई है चीख
यहीं इसी अंधी भीड़ में
गुम हो गई
एक बच्चे की दूधिया हँसी
हो सके तो
ढूँढकर ला दीजिए ।