भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घाटी में धूप / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:35, 11 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} भोर की पहली किरन से पुलक ...)
भोर की
पहली किरन से
पुलक –भरा
स्पर्श पाया ,
जैसे शिशु नींद में
रह-रहकर मुस्कराया ।
धूप उतरी
घाटियों में ,
ज्यों उतरता
सीढ़ियों से
पीठ पर लादे हुए
बस्ता किताबों का
एक छोटा
अबोध बच्चा ।
और जादू रौशनी का
धरा पर
उतर आया ।
बह उठी है
भीड़ सड़कों पर
पनाले –सी
छा गई गर्मीं
ढलानों पर
और वक़्त
थके चूर-चूर बच्चे –सा
कुनमुनाया ।