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अंतराल / वाज़दा ख़ान
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अन्तर्मन में रचा संसार और
बाह्य आवरण का संसार
न जाने क्यों अलग-अलग
ध्रुव बन जाते हैं
फिर तादातम्य स्थापित करने के
प्रयास में निरन्तर
अन्तराल ही बढ़ाते जाते हैं ।