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जंगल / वाज़दा ख़ान
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तमाम घने जंगलों में,
इक जंगल मैं भी हूँ, न काटे जाने
के प्रयास में प्रयत्नशील
दोनों हाथों से निरन्तर
नन्हीं-नन्हीं बाड़ लगाने का
प्रयास, सफ़लता !
कौन जाने ?