Last modified on 15 जून 2007, at 15:22

तुम मत घबराना / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:22, 15 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} दुख के बादल आएँगे, <br> छाएँ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दुख के बादल आएँगे,

छाएँगे, बरसेंगे ।

यह जीवन की रीत है बन्धु


तुम मत घबराना ।

सन्त, महात्मा, राजा, रानी

सबका दौर रहा।

दो पल बीते फिर धरती पर

कहीं न ठौर रहा ।

बिना पंख जो उड़े गगन में

मुँह की खाएँगे ।

आसमान क्या धरती पर भी

ठौर न पाएँगे ।

धूप-छाँव के जीवन में

सदा सुखी है कोई ?

कौन मरण से बच पाया है

हमको बतलाना ।

जो गर्दन पर छुरी चलाकर

माया जोड़ रहे

अपनी किस्मत के घट को वे

खुद ही फोड़ रहे ।

बिस्तर पर वे नोट बिछाकर

क्या पाएँगे चैन

कौन लूट ले या छीन ले

इसमें कटती रैन ।

केवल दो रोटी की भूख

फिर भी हैं हलकान

भूखों तक का कौर छीने

दिखलाते हैं शान