भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शंकर -स्तवन/ तुलसीदास/ पृष्ठ 6

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:57, 9 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=श…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


शंकर -स्तवन-6

 ( छंद 159, 160)

 (159)

पिंगल जटाकलापु माथेपै पुनीत आपु,
 पावक नैना प्रताप भ्रूपर बरत है।

लोयन बिसाल लाल ,सोहै भालचंद्र भाल,
कंठ कालकूटु, ब्याल-भूषन धरत है।।

 संुदर दिगंबर , बिभूति गात, भाँग खात,
रूरे सृंगी पूरें काल-कंटक हरत हैं।

देत न अघात रीझि , जात पात आकहींकें,
 भोरानाथ जोगी जब औढर ढरत हैं।।

(160)

देत संपदासमेत श्रीनिकेत जाचकनि,
भवन बिभूति-भाँग,बृषभ बहनु है।

नाम बामदेव दाहिनो सदा असंग रंग,
अद्ध अंग अंगना, अनंगको महनु है।

तुलसी महेसको प्रभाव भावहीं सुगम,
 निगम-अगमहूको जानिबो गहनु है।

 भेष तौ भिखारिको भयंकररूप संकर ,
दयाल दीनबंध्ुा दानि दारिददहनु है।।