भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़रा ठहरो / नीलेश रघुवंशी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:53, 26 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव }} ज़रा ठहरो इस मकान की पहली बरसात य...)
ज़रा ठहरो
इस मकान की पहली बरसात
याद आ गई घर की ।
छोटे भाई-बहनों को न निकलने की
हिदायत देती हुई
जल्दी-जल्दी बाहर से कपड़े
समेट रही होगी माँ ।
पिता चढ़ आए होंगे छत पर
भाई निकल गया होगा
साइकिल पर बरसाती लेने ।
पानी ज़रा ठहरो छत को ठीक होने दो
ले आने दो भाई को बरसाती ।