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गीतावली उत्तरकाण्ड पद 1 से 10 तक/पृष्ठ 8

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(8).राग केदारा

सखि! रघुनाथ-रूप निहारु |
सरद-बिधु रबि-सुवन मनसिज-मान भञ्जनिहारु ||

स्याम सुभग सरीर जन-मन-काम-पूरनिहारु |
चारुचन्दन मनहु मरकत-सिखर लसत निहारु ||

रुचिर उर उपबीत राजत पदिक गजमनि-हारु |
मनहु सुरधनु नखतगन बिच तिमिर-भञ्जनिहारु ||

बिमल पीत दुकूल दामिनि-दुति-बिनिन्दनिहारु |
बदन सुषमासदन सोभित मदन-मोहनिहारु ||

सकल अंग अनूप, नहिं कोउ सुकबि बरननिहारु |
दासतुलसी निखतहि सुख लहत निरखनिहारु ||