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गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 61 से 70/पृष्ठ 3

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काहेको खोरि कैकयिहि लावौं?
धरहु धीर, बलि जाउँ तात! मोको आज विधाता बावौं ||

सुनिबे जोग बियोग रामको हौं न होउँ मेरे प्यारे |
सो मेरे नयननि आगेतें रघुपति बनहि सिधारे ||

तुलसिदास समुझाइ भरत कहँ, आँसू पोञ्छि उर लाए |
उपजी प्रीति जानि प्रभुके हित, मनहु राम फिरि आए ||