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गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 1 से 10 तक/पृष्ठ 9
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राग जैतश्री
कहु कपि! कब रघुनाथ कृपा करि, हरिहैं निज बियोग
सम्भव दुख|
राजिवनयन, मयन-अनेक-छबि, रबिकुल-कुमुद-सुखद,
मयङ्क-मुख ||
बिरह-अनल-स्वासा-समीर निज तनु जरिबे कहँ रही न
कछु सक |
अति बल जल बरषत दोउ लोचन, दिन अरु रैन रहत
एकहि तक ||
सुदृढ़ ग्यान अवलम्बि, सुनहु सुत! राखति प्रान बिचारि
दहन मत |
सगुन रुप, लीला-बिलास-सुख सुमिरति करति रहति
अंतरगत ||
सुनु हनुमन्त! अनन्त-बन्धु करुनासुभाव सीतल कोमल अति |
तुलसिदास यहि त्रास जानि जिय, बरु दुख सहौं, प्रगट
कहि न सकति ||