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गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 21 से 30 तक/पृष्ठ 6
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विभीषण-शरणागति
जाय माय पायँ परि कथा सो सुनाई है |
समाधान करति बिभीषनको बार बार,
"कहा भयो तात! लात मारे, बड़ो भाई है ||
साहिब, पितु समान, जातुधानको तिलक,
ताके अपमान तेरी बड़िए बड़ाई है |
गरत गलानि जानि, सनमानि सिख देति,
"रोष किये तोष, सहें समुझें भलाई है ||
इहाँतें बिमुख भयें, रामकी सरन गए
भलो नेकु, लोक राखे निपट निकाई है |
मातु-पग सीस नाइ, तुलसी असीस पाइ
चले भले सगुन, कहत "मन भाइ है ||