भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतावली लङ्काकाण्ड पद 6 से 10 तक/पृष्ठ 3

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:26, 9 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास |संग्रह= गीतावली/ तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} [[Category…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(8)
रागमारु

  जौ हौं अब अनुसासन पावौं |
  तौ चन्द्रमहि निचोरि चैल-ज्यों, आनि सुधा सिर नावौं ||

  कै पाताल दलौं ब्यालावलि अमृत-कुण्ड महि लावौं |
  भेदि भुवन, करि भानु बाहिरो तुरत राहु दै तावौं ||

  बिबुध-बैद बरबस आनौं धरि, तौ प्रभु-अनुग कहावौं |
  पटकौं मीच नीच मूषक-ज्यौं, सबहिको पापु बहावौं ||

  तुम्हरिहि कृपा, प्रताप तिहारेहि नेकु बिलम्ब न लावौं |
  दीजै सोइ आयसु तुलसी-प्रभु, जेहि तुम्हरे मन भावौं ||