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गीतावली लङ्काकाण्ड पद 16 से 20 तक/पृष्ठ 3

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 आली, अब राम-लषन कित ह्वै हैं |
  चित्रकूट तज्यौ तबतें न लही सुधि, बधू-समेत कुसल सुत द्वै हैं ||

  बारि बयारि, बिषम हिम-आतप सहि बिनु बसन भूमितल स्वै हैं |
  सन्द-मूल, फल-फूल असन बन, भोजन समय मिलत कैसे वैहैं ||

  जिन्हहि बिलकि सोचिहैं लता-द्रुम, खग-मृग-मुनि लोचन जल च्वैहैं |
  तुलसिदास तिन्हकी जननि हौं, मो-सी निठुर-चित औरो कहुँ ह्वैहैं ||