भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जबहि रघुपति सँग सीय चली।/ तुलसीदास
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:41, 13 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=ग…)
(10)
जबहि रघुपति-सँग सीय चली |
बिकल-बियोग लोग-पुरतिय कहैं ,अति अन्याउ, अली ||
कोउ कहै, मनिगन तजत काँच लगि, करत न भूप भली |
कोउ कहै, कुल-कुबेलि कैकेयी दुख-बिष-फलनि फली ||
एक कहैं, बन जोग जानकी बिधि बड़ बिषम बली |
तुलसी कुलिसहुकी कठोरता तेहि दिन दलकि दली ||