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फिर उन्हें हम पुकार बैठे हैं / गुलाब खंडेलवाल
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फिर उन्हें हम पुकार बैठे हैं
फिर कोई दाँव हार बैठे हैं
दिल कहाँ और कहाँ तेरी दुनिया!
शीशा पत्थर पे मार बैठे हैं
ज़िन्दगी कुछ तो भर दे प्याले में
हम भी पीने उधार बैठे हैं
होंगे मोटी कहीं उन आँखों में
हंस जमुना के पार बैठे हैं
कुछ तो सुन्दर था रूप पहले से
और कुछ हम सँवार बैठे हैं
कैसे दिल चीरकर दिखाएँ गुलाब
प्यार पर पहरेदार बैठे हैं