निश्तर ख़ानक़ाही

| जन्म | 1930 | 
|---|---|
| जन्म स्थान | बिजनौर, उत्तर प्रदेश, भारत | 
| कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
| मोम की बैसाखियाँ (1987), ग़ज़ल मैंने छेड़ी (1997), कैसे-कैसे लोग मिले (1998), फिर लहू रोशन हुआ (2007) मेरे लहू की आग (पाँचों ग़ज़ल-संग्रह) । धमकीबाज़ी के युग में (1995), दंगे क्यों और कैसे (1995), विश्व आतंकवाद : क्यों और कैसे (1997), चुने हुए ग्यारह एकांकी (1998), मानवाधिकार : दशा और दिशा (1998), ग़ज़ल और उसका व्याकरण (1999)। | |
| विविध | |
| जीवन परिचय | |
| निश्तर ख़ानक़ाही / परिचय | |
ग़ज़ल-संग्रह
फुटकर शेर
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- धड़का था दिल कि प्यार का मौसम गुज़र गया / निश्तर ख़ानक़ाही
 - आप अपनी आग के शोलों में जल जाते थे लोग / निश्तर ख़ानक़ाही
 - क्यों बयाबाँ बयाबाँ भटकता फिरा / निश्तर ख़ानक़ाही
 - तेज़ रौ पानी की तीख़ी धार पर चलते हुए / निश्तर ख़ानक़ाही
 - न मिल सका कहीं ढूँढ़े से भी निशान मेरा / निश्तर ख़ानक़ाही
 - अनजाने हादसात का खटका लगा रहा / निश्तर ख़ानक़ाही
 - सौ बार लौह-ए-दिल से मिटाया गया मुझे / निश्तर ख़ानक़ाही
 - संदल के सर्द जंगल से आ-आ के थक गई हवा / निश्तर ख़ानक़ाही
 - एक पल ताअल्लुक का वो भी सानेहा जैसा / निश्तर ख़ानक़ाही
 - अपने ही खेत की मट्टी से जुदा हूँ मैं तो / निश्तर ख़ानक़ाही
 - मैं भी तो इक सवाल था हल ढूँढते मेरा / निश्तर ख़ानक़ाही
 - सौ बार लौहे-दिल से मिटाया गया मुझे / निश्तर ख़ानक़ाही
 - तेज़ रौ पानी की तीखी धार पर चलते हुए / निश्तर ख़ानक़ाही
 - हर गाम पे यह सोच , के में हूँ कि नहीं हूँ / निश्तर ख़ानक़ाही
 
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