भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो तुमने बनाये हैं, आधार बदल डालो / मनु भारद्वाज

Kavita Kosh से
Manubhardwaj (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:03, 19 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनु भारद्वाज |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}} <Poem> ज...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो तुमने बनाये हैं, आधार बदल डालो
सरकार निकम्मी है. सरकार बदल डालो

जो क़त्ल करता है, वो धर्म नहीं होता
धर्मो की सियासत के व्यपार बदल डालो

बारूद की दीवाली और ख़ून की होली है
ऐ अहल-ए-वतन ऐसे त्यौहार बदल डालो

है नाम मुहब्बत का कहते हैं जिसे मज़हब
जिस प्यार में नफरत हो वो प्यार बदल डालो

ले आओ मुहब्बत की पुरनूर दुकानों को
मकतल सा ये लगता है, बाज़ार बदल डालो

दुश्मन जो भला जो तो सीने से लगा लीजे
ठोकर का जो बाईस है वो यार बदल डालो