भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़माना कब कहाँ कैसा मिलेगा / सिया सचदेव
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:26, 28 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सिया सचदेव }} {{KKCatGhazal}} <poem> ज़माना कब कहा...' के साथ नया पन्ना बनाया)
ज़माना कब कहाँ कैसा मिलेगा
न तुझसा कोई न मुझसा मिलेगा
बिछड़ के मुझ से तुम को क्या मिलेगा
कहाँ इक दोस्त मुझ जैसा मिलेगा
मेरी आँखों की जानिब तुम ना देखो
यहाँ मौसम बहोत भीगा मिलेगा
मेरे कातिल को कोई इतना पूछे
मिटा के मुझको आखिर क्या मिलेगा
दिलों में प्यार का मौसम रहे तो
खिला हर शाख पर गुंचा मिलेगा
उसे सब दिल बातें बोल देंगे
ख़ुदा का नेक जो इक बंदा मिलेगा