भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नदिया का घना-घना कूल है / ठाकुरप्रसाद सिंह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:43, 21 सितम्बर 2007 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नदिया का घना-घना कूल है

वंशी से बेधो मत प्यारे

यह मन तो बिंधा हुआ फूल है

नदिया का घना-घना कूल है


थिर है नदिया का जल जामुनी

तिरती रे छाया मनभावनी

याद नहीं आती क्या चांदनी!


पिछला जीवन क्या फिजूल है ?

नदिया का घना-घना कूल है


मैं आई जल भर हूँ आनने

या नहीं की सुख के दिन मांगने

जो जाता बीते फल थामने


करता वह बहुत बड़ी भूल है

नदिया का घना-घना कूल है