भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कनाट प्लेस : एक शाम / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:49, 24 दिसम्बर 2011 का अवतरण
ज्योतिषी सितारों ने फैला दीं
श्वेत चादरें
फूटी क़िस्मत वाले क्या करें ?
(जिए या मरें ?)
देह धरे कदली की रात,
सड़कों पर घूमती
दूध्या उजाले की प्यास
पंखुरियाँ चूमती
मछली-सी झूम-झूलतीं
कुहरे में झालरें
महँगी अस्मत वाले कुआ करें ?
(जिए या मरें ?)