भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

२८ अगस्त ’७१ / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:59, 25 दिसम्बर 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज बस इतना किया
दोस्तानी दुश्मनी को
याद कर के सो लिया

शब्द जो उगले गए थे
वे पुराने भरे मन के थे
आँच-सी सुलगा गए जो बदन में
                    ठंडी जलन के थे
बेवकूफ़ी यह हुई मेरी
कि उनका हो लिया
चलो अच्छा ही हुआ जो सो लिया

बात आई-गई करते हैं कभी तो,
हर समय गम्भीर रहने से
एक धागा टूट जाता है अचानक
मुस्करा कर कुछ न सहने से
और फिर
ख़ामोशियों के बीच थोड़ा हँस दिया
                   आज बस इतना किया

(डायरी से)