एक तू ही है ग़मगुसार मेरा,
निभाया तूने सदा साथ मेरा,
मैं जब भी तन्हा दिखी हूँ तुझको,
तूने चुपके से थामा हाथ मेरा,
बरस रहा है नूर,
कतरा-कतरा बन के किरन,
तेरी ही नुक्रई शुआएँ,
ढाँपती हैं बदन,
तेरे शफ़्फ़ाफ़,
चमकते हुए,
नुक्कूश-ओ-दहाँ,
जिनसे आबाद
हो रहा है
फिर से
मेरा जहाँ,
तेरी बेलौस रौशनी में दमकता है समाँ,
तेरे बगैर है तीरा-ओ-तार सारा ज़माँ,
तू दामन-ए-शब,
तो रोज़ ही
रौशन कर दे,
मेरे आँगन में भी
इम्ररोज़ उजाला भर दे !
ऐ मेरे चाँद,
जा के फिर से
छुप गया है कहाँ,
पता बताए कोई,
अब के मैं ही जाऊँ वहाँ !
(15.02.95)