भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये आबशार / रेशमा हिंगोरानी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:01, 31 जनवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेशमा हिंगोरानी |संग्रह= }} {{KKCatNazm}} <poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सर-ए-रुख़सार
छलकती आँखें,
हुए आबाद वही
ख्वाब-ओ-ख़याल,
हुईं शादाब
पुरानी यादें...

अश्क हर एक कह गया मुझसे,
जो बातें दिल न कह सका तुझसे,

शब-ए-हिज्राँ की,
और फु़र्क़त की...
हुआ करती हैं
बातें फुर्सत की!

और फुर्सत हमें नसीब कहाँ?
कहाँ हासिल हमें वक़्त उतना,
है गुफ़्तगू का तकाज़ा जितना!

क़ैद महवर-ए-वक़्त हैं दोनों,
रहें मसरूफ इस क़दर दोनों...
कि मुलाक़ात, हर, अधूरी रहे,
हर एक बात, अनकही सी रहे...

मिलन को प्यासी रहीं,
प्यासी रहीं...
मगर हैं फिर भी छलकती आँखें!

18.08.93
(आबशार = जलप्रपात, वाटर-फ़ाल)