भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जंगल में / प्रेमशंकर रघुवंशी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:12, 13 फ़रवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमशंकर रघुवंशी }} {{KKCatKavita}} <poem> गूँ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
गूँथा जा रहा
आटे की तरह
पहाड़
फेंटे जा रहे
दूध दही की तरह
प्रपात
जंगल में
बारिश जो हो रही
प्यार की !!