भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वही ताज है वही तख़्त है / बशीर बद्र
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:21, 27 मई 2012 का अवतरण
वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है
ये वही ख़ुदा की ज़मीन है ये वही बुतों का निज़ाम है
बड़े शौक़ से मेरा घर जला कोई आँच न तुझपे आएगी
ये ज़ुबाँ किसी ने ख़रीद ली ये क़लम किसी की ग़ुलाम है
मैं ये मानता हूँ मेरे दिए तेरी आँधियोँ ने बुझा दिए
मगर इक जुगनू हवाओं में अभी रौशनी का इमाम है