भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बीते पल / कल्पना लालजी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:24, 5 जून 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कल्पना लालजी }} {{KKCatMauritiusRachna}} <poem> मन मेरा ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन मेरा फिर आज किया मैं भी बच्चा बन जाऊँ
छोड़ झमेले दुनियादारी के मीलों की फिर दौड लगांऊ
छूमंतर हो गया बचपना कैसे और कब जान न पाया
आँख खुली जब मेरी एक दिन राशन का थैला हाथ में पाया
गिल्ली डंडा और पतंगे रख तकिये के नीचे सोता था
मेरी कन्नी काटी किसने बरसों बीते जान न पाया
दौड भाग की बात न पूछो आगे ही आगे रहता था
कड़ी धूप और वर्षा को भी हँसते–हँसते सहता था
अठखेलियां बचपन की याद आज भी आती हैं
कानो से जब किलकारियां अनजाने ही टकराती हैं
कहाँ उड़ गए सोने के पल आज़ादी के साँझ–सवेरे
छोड़ गए क्यों बेड़ियों में जकड़े मेरे अरमान सारे