भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्यों इन आँखिन सौं निरसंक / मतिराम

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:03, 28 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मतिराम }} <poem> क्यों इन आँखिन सौं न...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


क्यों इन आँखिन सौं निरसंक ह्वै मोहन को तन पानिप पीजै.

नेक निहारे कलंक लगै इहि गाँव बसे कहौ कैसे के जीजे .

होत रहे मन यों ‘मतिराम’ कहूँ बन जाय बरो तप कीजे .

ह्वै बनमाल हिए लगिय अरु ह्वै मुरली अधर- रस पीजे .