Last modified on 31 अगस्त 2012, at 16:11

इसका कब पक्का नाता है / अश्वनी शर्मा

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:11, 31 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अश्वनी शर्मा |संग्रह=वक़्त से कुछ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


इसका कब पक्का नाता है
मौसम है, आता-जाता है।

सपने को छोडूं मैं कैसे
एक यही तो मन भाता है।

कोई नदी दीवानी होगी
तभी समंदर अपनाता है।

सन्नाटा चाहे दिखता हो
एक बवंडर गहराता है।

बच्चा सब सीधा बूढ़ा हो
खून रगों में जम जाता है।

जिन्हें चलाना आता, उनका
खोटा सिक्का चल जाता है।

लाख अंधेरों की साज़िश हो
अपना सूरज से नाता है।