केतो करौ कोई,पैए करम लिखोई, ताते,
दूसरी न होई,उर सोई ठहराईए.
आधी ते सरस बीति गई बरस,अब
दुर्जन दरस बीच रस न बढाईए.
चिंता अनुचित, धरु धीरज उचित,
सेनापति ह्वै सुचित रघुपति गुनगाईए.
चारि बर दानि तजि पायँ कमलेच्छन के,
पायक मलेच्छन के कहे को कहलाईए.