नाहीं नाहीं करै,थोडो माँगे सब दैन कहै,
मंगल को देखि पट देत बार बार है .
जिनके मिलत भली प्रापति की घटी होति,
सदा शुभ जनमन भावै निरधार है .
भोगी ह्वै रहत बिलसत अवनी के मध्य,
कन कन जोरै, दान पाठ परवार है.
सेनापति वचन की रचना निहारि देखौ,
दाता और सूम दोउ कीन्हें इकसार है.