भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गौरी के वर देखि बड़ दुःख / विद्यापति

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:09, 26 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विद्यापति }} {{KKCatKavita}} <poem> गौरी के वर दे...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गौरी के वर देखि बड़ दुःख भेल, सखी बड़ दुःख भेल.

मन के मनोरथ मने रहि गेल,
           लैलो भिखारी पर सेहो बकलेल !
भोला के कतहुं जगत नाहीं साँक लेल,
           बरके जे देखि गायनि धुरि गेल!!

हमर गौरी नहिं छथि बकलेल,
           तिनका एहन बर कोना आनि गेल !
भनहिं विद्यापति बड़ दिन भेल,
           गौरी मंगन शिव आनन्द भेल !!