भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम नीके दुहि जानत गैया / कुम्भनदास
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:17, 4 अक्टूबर 2012 का अवतरण (' {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुम्भनदास }} Category:पद <poeM> तुम नीके द...' के साथ नया पन्ना बनाया)
तुम नीके दुहि जानत गैया.
चलिए कुंवर रसिक मनमोहन लागौ तिहारे पैयाँ.
तुमहि जानि करि कनक दोहनी घर तें पठई मैया.
निकटहि है यह खरिक हमारो,नागर लेहूँ बलैया.
देखियत परम सुदेस लरिकई चित चहुँटयो सुंदरैया.
कुम्भनदास प्रभु मानि लई रति गिरि-गोबरधन रैया.