भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ओ बसन्ती पवन पागल / शैलेन्द्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:44, 29 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= शैलेन्द्र |संग्रह=फ़िल्मों के लि...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ओ बसंती पवन पागल, ना जा रे ना जा, रोको कोई
ओ बसंती ...

बन के पत्थर हम पड़े थे, सूनी सूनी राह में
जी उठे हम जब से तेरी, बांह आई बांह में
बह उठे नैनों के काजल, ना जा रे ना जा, रोको कोई
ओ बसंती ...

याद कर तूने कहा था, प्यार से संसार है
हम जो हारे दिल की बाजी, ये तेरी ही हार है
सुन ये क्या कहती है पायल, ना जा रे ना जा, रोको कोई
ओ बसंती ...