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कहे झूम झूम रात ये सुहानी / शैलेन्द्र
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कहे झूम-झूम रात ये सुहानी
पिया हौले से छेड़ो दुबारा
वही कल की रसीली कहानी
कहे झूम-झूम रात ...
सुन के जिसे दिल मेरा धड़का
लाज के सर से आँचल सरका
रात ने ऐसा जादू फेरा
और ही निकला रंग सहर का
कहे झूम-झूम रात ...
मस्ती भरी ये ख़ामोशी
चुप हूँ खड़ी देखो मैं खोई सी
देख रही हूँ मैं एक सपना
कुछ जागी सी कुछ सोई सी
कहे झूम-झूम रात ...
तन भी तुम्हारा मन भी तुम्हारा
तुमसे ही बालम जग उजियारा
रोम-रोम मेरा आज मनाए
छूटे कभी न साथ तुम्हारा
कहे झूम-झूम रात ...