भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छोटी-सी ये ज़िन्दगानी रे / शैलेन्द्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:07, 29 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= शैलेन्द्र |संग्रह=फ़िल्मों के लि...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छोटी सी ये ज़िंदगानी रे
चार दिन की जवानी तेरी
हाय रे हाय
ग़म की कहानी तेरी

शाम हुई ये देश बीराना
तुझ को अपने बलम घर जाना, सजन घर जाना
राह में मूरख मत लुट जाना, मत लुट जाना
छोटी सी ये ...

बाबुल का घर छूटा जाये
अखियन घोर अँधेरा छाये, जी दिल घबराये
आँख से टपके दिल का खज़ाना
छोटी सी ये ...