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जाओ रे, जोगी तुम जाओ रे / शैलेन्द्र

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जाओ रे, जोगी तुम जाओ रे
ये है प्रेमियों की नगरी
यहाँ प्रेम ही है पूजा
जाओ रे ...

प्रेम की पीड़ा सच्चा सुख है
प्रेम बिना ये जीवन दुख है
जाओ रे ...

जीवन से कैसा छुटकारा
है नदिया के साथ किनारा
जाओ रे ...

ज्ञान कि तो है सीमा ज्ञानी
गागर में सागर का पानी
जाओ रे ...