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जोशे जवानी हाय रे हाय / शैलेन्द्र

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जोश-ए--जवानी हाय रे हाय
निकले जिधर से धूम मचाये
दुनिया का मेला, मैं हूँ अकेला
कितना अकेला हूँ मैं
जोश-ए-जवानी हाय रे हाय...

शाम का रंगीं शोख़ नज़ारा
और बेचारा ये दिल
ढूँध के हारा, कोई सहारा
पर न मिली मंज़िल
जोश-ए-जवानी हाय रे हाय...

कोई तो हमसे दो बात करता
कोई तो कहता हलो
घर न बुलाता पर ये तो कहता
कुछ दूर तक संग चलो
जोश-ए-जवानी हाय रे हाय...

बेकार गुज़रे हम इस तरफ़ से
बेकार था ये सफ़र
अब दर-ब-दर की खाते हैं ठोकर
राजा जो थे अपने घर
जोश-ए-जवानी हाय रे हाय...