भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम ने जो क़सीदों को / 'अज़हर' इनायती
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:56, 19 फ़रवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='अज़हर' इनायती }} Category:गज़ल <poeM> हम ने ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हम ने जो क़सीदों को मुनासिब नहीं समझा
शह ने भी हमें अपना मुसाहिब नहीं समझा.
काँटे भी कुछ इस रुत में तरह-दार नहीं थे
कुछ हम ने उलझना भी मुनासिब नहीं समझा.
ख़ुद क़ातिल-ए-अक़दार-ए-शराफ़त है ज़माना
इल्ज़ाम है मैं हिफ़्ज़-ए-मरातिब नहीं समझा.
हम-असरों में ये छेड़ चली आई है 'अज़हर'
याँ 'ज़ौक़' ने ग़ालिब' को भी ग़ालिब नहीं समझा.