मक़बूल-ए-अवाम हो गया मैं
गोया के तमाम हो गया मैं
एहसास की आग से गुज़र कर
कुछ और भी ख़ाम हो गया मैं
दीवार-ए-हवा पे लिख गया वो
यूँ नक़्श-ए-दवाम हो गया मैं
पत्थर के पाँव धो रहा था
पानी का पयाम हो गया मैं
उड़ता हुआ अक्स देखते ही
फैला हुआ दाम हो गया मैं