भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुलों के साथ अजल के पयाम / ग़ुलाम रब्बानी 'ताबाँ'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:31, 29 मार्च 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ग़ुलाम रब्बानी 'ताबाँ' }} {{KKCatGhazal}} <poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 गुलों के साथ अजल के पयाम भी आए
 बहार आई तो गुलशन में दाम भी आए

 हमीं न कर सके तज्दीद-ए-आरज़ू वरना
 हज़ार बार किसी के पयाम भी आए

 चला न काम अगर चे ब-ज़ोम-ए-राह-बरी
 जनाब-ए-ख़िज़्र अलैहिस-सलाम भी आए

 जो तिश्ना-ए-काम-ए-अज़ल थे वो तिश्ना-काम रहे
 हज़ार दौर में मीना ओ जाम भी आए

 बड़े बड़ों के क़दम डगमगा गए 'ताबाँ'
 रह-ए-हयात में ऐसे मक़ाम भी आए