Last modified on 4 अप्रैल 2013, at 20:43

अक्स भी कब शब-ए-हिज्राँ का / 'फ़ुगां'

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:43, 4 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशरफ़ अली 'फ़ुगां' }} {{KKCatGhazal}} <poem> अक्स ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अक्स भी कब शब-ए-हिज्राँ का तमाशाई है
एक मैं आप हूँ या गोशा-ए-तन्हाई है

दिल तो रुकता है अगर बंद-ए-क़बा बाज़ न हो
चाक करता हूँ गिरेबाँ को तो रुसवाई है

ताक़त-ए-ज़ब्त कहाँ अब तो जिगर जलता है
आह सीने से निकल लब पे मेरे आई है

मैं तो वो हूँ कि मेरे लाख ख़रीदार हैं अब
लेक इस दिल से धड़कता हूँ कि सौदाई है

दिल-ए-बे-ताब 'फ़ुग़ाँ' उम्मत-ए-अय्यूब नहीं
न उसे सब्र है हरगिज़ न शकेबाई है