भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बादल बरसें / मोहसिन नक़वी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:06, 19 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहसिन नक़वी }} {{KKCatNazm}} <poem> बादल बरसे...' के साथ नया पन्ना बनाया)
बादल बरसें
बादल इतनी ज़ोर से बरसें
मेरे शहर की बंजर धरती
गुम सुम खाक उड़ाते रस्ते
सुखाए चेहरे पीली अंखियन
बोसीदा मटियाले पैकर ऐसी बहकें
अपने को पहचान न पाएँ
बिजली चमके !
बिजली इतनी ज़ोर की चमके!
मेरे शहर की सूनी गलियाँ
मुद्दत्त के तारीक झरोखे
पुर'इसरार खंडहर वीराने
माज़ी की मद्धम तस्वीरें ऐसी चमकें
सीने का हर भेद ऊगल दें!
दिल भी धड़के
दिल भी इतनी ज़ोर से धड़के!
सोचों की मजबूत तनाबे
ख्वाहिश की अनदेखी गिरहें
रिश्तों की बोझल ज़ंजीरें एक छंके से खुल जाएँ ...
सराय रिश्ते
सारे बंधन
चाहूँ भी तो याद ना आएँ
आखें अपनी दीद को तरसें
बादल इतने ज़ोर से बरसें