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गौरैया / उदय भान मिश्र

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कितने अधिकार से
फुदकती है गौरैया!
घर में
आंगन में
छज्जे-मुंडेर पर

मेरा घर
अपना घर समझती है
गौरैया!

चहचहाती है गौरैया!
खिड़की से
झांकती है गौरैया!

घोंसलें बनाती है
गौरैया!
दाना चूगती हैं
चुगाती है
गौरैया!

दानें बिखेरता हूं
चुन-चुन कर खाती है
और
उड़-उड़ जाती है
गौरैया!
पास नहीं आती है
गौरैया!