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प्रेम में पुरुष / रंजना जायसवाल

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उसकी पलकों पर रहने लगते हैं मेघ
जो छलक आते हैं अक्सर आँसू बनकर
होंठों में छिपी दामिनी कौंध -कौंध जाती है
मोहक मुस्कान बनकर
उषा चेहरे पर जमा लेती है कब्ज़ा
कठोरता पर विजय पा लेती है
कोमलता अब वह समुद्र नहीं
नदी होता है सच कहूँ तो पूरी स्त्री होता है
प्रेम करता पुरुष