भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेम में पुरुष / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:48, 28 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल }} {{KKCatKavita}} <poem> उसकी पलक...' के साथ नया पन्ना बनाया)
उसकी पलकों पर रहने लगते हैं मेघ
जो छलक आते हैं अक्सर आँसू बनकर
होंठों में छिपी दामिनी कौंध -कौंध जाती है
मोहक मुस्कान बनकर
उषा चेहरे पर जमा लेती है कब्ज़ा
कठोरता पर विजय पा लेती है
कोमलता अब वह समुद्र नहीं
नदी होता है सच कहूँ तो पूरी स्त्री होता है
प्रेम करता पुरुष