भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सदी के अंत में / रविकान्त

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:49, 28 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रविकान्त }} {{KKCatKavita}} <poem> सदी जिन दुःस्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सदी जिन दुःस्वप्नों से उबर आई है
गर्व कर सकता था मैं सबसे पहले
उन्हीं पर
लिखना चाहता था मैं अपना सब कुछ
सदी के नाम

यदि उतर चुका हो हमारी याददाश्त से
सती का आखरी चेहरा तो
भुला दिया जाय तत्काल
इस प्रक्रिया को

यदि न रह गई हो शेष अश्पृश्यता
तो पर लिखे
'अश्पृश्यता मानव जाति पर कलंक है' के नारे
मिटा दिए जायँ
यदि हर शहर के पास एक-एक तहखाना हो
जिसमें समा सकें
हजारों-हजार लोग चुपचाप
तो
साफ हो जाने चाहिए सबसे पहले
शहरों के जख्म
जैसे
लुप्त हो गई है कोढ़ी सदी
हमारे भीतर