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रात्रि / शमशेर बहादुर सिंह

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1.
मैं मींच कर आँखें
कि जैसे क्षितिज
      तुमको खोजता हूँ।
 
2.
ओ हमारे साँस के सूर्य!
साँस की गंगा
            अनवरत बह रही है।
      तुम कहाँ डूबे हुए हो?