Last modified on 7 जुलाई 2013, at 11:09

आंखें खोलते ही / हेमन्त शेष

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:09, 7 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हेमन्त शेष }} {{KKCatKavita}} <poem> आंखें खोलते ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आंखें खोलते ही

जैसा मिला यह संसार
था संदिग्ध
जाना जितना अपर्याप्त, न जाने जितना
बन्द होने तक आंखें
वह जानने लायक है

यह सोचते हुए ही मैंने जाना
बस कुछ असंदिग्ध -
और थोड़ा सा अनजाना