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मुहब्बत के साग़र छलकने लगे हैं / इब्राहीम 'अश्क़'
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मुहब्बत के साग़र छलकने लगे हैं
वो दिल बन के दिल में धड़कने लगे हैं
ये कैसी वफ़ाओं की रितु आ गई है
ख़यालों में एक बेख़ुदी छा गई है
क़दम ज़िन्दगी के बहकने लगे हैं
उमन्गों के फूलों से दामन भरा है
मेरा ख़्वाब कैसे हक़ीक़त बना है
निगाहों में जुगनू झमकने लगे हैं
सितारों से आगे है दुनिया वफ़ा की
मगर हम ने की है तमन्ना वफ़ा की
जहाँ आज हैरत से तकने लगे हैं