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जश्ने वहशत मकतल देर तक नहीं रहता / अनवर जलालपुरी

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जश्ने वहशत मकतल देर तक नहीं रहता
ज़हन में कोई जंगल देर तक नहीं रहता

ख़्वाब टूट जाते हैं दिल शिकस्त खाता है
बे सबब कोई पागल देर तक नही रहता

दिन गुज़रते रहते हैं उम्र ढलती जाती है
चेहरा-ए-हसीं कोमल देर तक नहीं रहता

आज की हसीं सूरत कल बिगड़ भी सकती है
आँख में कभी काजल देर तक नहीं रहता

खारदार राहों से दुश्मनी न कर लेना
पाँव के तले मख़मल देर तक नहीं रहता